जब 10 रुपये थी मजदूरी और अंग्रेज कुंभ स्नान के लिए वसूलते थे एक रुपया सिर मुंडाने के लिए भी देना पड़ता था टैक्स…
वह एक रुपया स्नान के लिए वसूलते थे. फैनी के ही विवरण से यह भी सामने आता है कि अंग्रेजों ने जब कुंभ को समझना शुरू किया तो उन्होंने इसे बहुत व्यावसायिक स्थल के तौर पर देखा. फिर उन्होंने यहां जुटने वाली बड़ी भीड़ को देखते हुए कुंभ मेले में स्नान कर लगा दिया उनकी इस प्रतिक्रिया को ब्रिटिश ट्रैवलर फैनी पार्क्स ने अपने ट्रेवलॉग में बहुत दिलचस्प तरीके से दर्ज किया है.
प्रयागराज में महाकुंभ-2025 का आयोजन हो रहा है. श्रद्धालु यहां स्नान के लिए पहुंचे हुए हैं और संगम तट के घाटों पर आस्था का सैलाब उमड़ आया है. यह धार्मिक मेला और इतना बड़ा आयोजन हमारे देश में सदियों की परंपरा रही है जो कि युगों के निर्बाध गति से जारी है. आश्चर्य होता है कि जिस काल में मंदिर और मठ तोड़े गए, उन्हें नुकसान पहुंचाया गया उस दौर में भी इस अध्यात्मिक आयोजन को भंग नहीं किया जा सका. यह मेला न केवल आध्यात्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व का प्रतीक भी है. प्रयागराज का में आयोजित होने वाला कुंभ हर बार अपनी अलग खासियत के कारण देश के ही नहीं, बल्कि बाहरी लोगों को भी आकर्षित करता रहा है. ब्रिटिश शासन काल में वह भी ब्रिटिश अफसर इतने बड़े आयोजन को लेकर चौंके हुए थे.
स्नान कर और नाई टैक्स अंग्रेजों ने लगाया था
उनकी इस प्रतिक्रिया को ब्रिटिश ट्रैवलर फैनी पार्क्स ने अपने ट्रेवलॉग में बहुत दिलचस्प तरीके से दर्ज किया है. फैनी के ही विवरण से यह भी सामने आता है कि अंग्रेजों ने जब कुंभ को समझना शुरू किया तो उन्होंने इसे बहुत व्यावसायिक स्थल के तौर पर देखा. फिर उन्होंने यहां जुटने वाली बड़ी भीड़ को देखते हुए कुंभ मेले में स्नान कर लगा दिया. वह एक रुपया स्नान के लिए वसूलते थे एक रुपया कितनी बड़ी रकम रही होगी, इसे ऐसे समझिए कि उस समय एक आम आदमी की आमदनी ही 10 रुपये थी. अंग्रेजों ने तो बाल कटवाने पर भी टैक्स लगाया था. कुंभ में स्नान के बाद बाल मुंडवाने की परंपरा भी रही है. 1870 में ब्रिटिशों ने 3,000 नाई केंद्र स्थापित किए थे और उनसे लगभग 42,000 रुपये आए थे. इस राशि का लगभग एक चौथाई हिस्सा नाईयों से लिया गया था, प्रत्येक नाई को 4 रुपये टैक्स देना पड़ता था.